सर्जिकल स्ट्राइक तो मास्टर स्ट्रोक है

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सर्जिकल स्ट्राइक तो मास्टर स्ट्रोक हैसर्जिकल स्ट्राइक

पाकिस्तानी आतंकी गुटों के खिलाफ एलओसी पार करके सर्जिकल स्ट्राइक भारत ने किया, उस दौरान मैं एक बार फिर से जंगल महल के उन इलाकों में था जहां मलेरिया अब भी जानलेवा है, जहां सड़कें बन कर तैयार हैं तो लोगों को लगा कि विकास हो गया, और जहां करीब साढ़े तीन साल से कोई राजनीतिक हत्या नहीं हुई है।

पाकिस्तान ने जब उरी में भारतीय सैन्य शिविर पर हमला कर दिया और हमारे 18 (अब 19) जवान शहीद हो गए, तब से हम में से अधिकतर लोगों के ख़ून उबल रहे थे। देश पर युद्धोन्माद-सा छा गया था और टीवी चैनल लग रहा था, सीधे पाकिस्तान पर ही हमला बोल देंगे।

उन्हीं दिनों, साइबर विश्व के नागरिक और खबरों से नजदीकी रखने वाले लोग जानते होंगे कि एक खबरिया वेबसाइट ने सर्जिकल स्ट्राइक की खबर फोड़ी। रात भर जानकार दोस्त इस पर विचार-विमर्श पर चर्चा करते रहे और सामान्य बुद्धि यही कहती थी कि अगर, ऐसा कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुआ भी तो वह संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बयान के बाद ही होगा।

हुआ भी यही लेकिन उससे पहले, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों, भारत और पाकिस्तान को मिलकर गरीबी के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया था।

वक्त और जगह तय हम करेंगे, यह बयान संभवतया अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है लेकिन यह मान लेने में कोई दो राय नहीं है कि उरी पर आतंकी हमले के बाद मोदी सामरिक से कहीं ज्यादा राजनैतिक और कूटनीतिक उलझन में रहे होंगे। अपनी विदेश नीति में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को नई तरह के कूटनीतिक तेवर दिए हैं। पाकिस्तान के साथ अगर उलझाव लंबा चला तो इन तेवरों की दिशा भी बदल सकती है।

यह सही है कि भारत की विदेश नीति का केन्द्र पिछले कई दशकों से पाकिस्तान के साथ रिश्ते रहे हैं और भारत ने पाकिस्तान से दुश्मनी को केन्द्र में रखकर ही, या पाकिस्तान ने भी भारत को केन्द्र में रखकर अपने दोस्त या दुश्मन तय किए।

पाकिस्तान के साथ रिश्ते नरम करने की पहल अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। वाजपेयी का जिक्र इसलिए क्योंकि दक्षिणपंथी पार्टी के प्रधानमंत्री होने के नाते पाकिस्तान के साथ रिश्ते खराब होने की सबको आशंका थी, लेकिन वाजपेयी ने पहल करके सबको चौंका दिया था। यह बात और है कि उसका नतीजा करगिल युद्ध के रूप में निकला।

अब जबकि, दुनिया भर में सन् 1999 के मुकाबले भारत अधिक ताकतवर है, मोदी ने भी वाजपेयी की उस पहल को अधिक तेज़ी दी थी। खुद नवाज शरीफ की पोती के शादी में अनौपचारिक रूप से पहुंचकर, या अपने मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण में पाकिस्तान को भी आमंत्रित करके, या यूं ही सेहत का हाल-चाल पूछकर, मोदी ने रिश्तों को अनौपचारिक रूप देने की कोशिश की लेकिन, पटानकोट और उरी के हमलों के बाद पाकिस्तान को उत्तर देना जरूरी था।

हालांकि, भारत ने पठानकोट के बाद संयम और सूझबूझ का परिचय दिया लेकिन उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करके मोदी ने यह भी साबित किया कि 1999 में जहां वाजपेयी एलओसी पार नहीं कर पाए थे, वहीं मोदी ने मुंहतोड़ जवाब भी दिया और नियंत्रण रेखा के पार भी गए। तो एक बात समझिए कि पाकिस्तान को नाथने की यह कोशिश पहले से ही लोकप्रिय नरेन्द्र मोदी को कुछ उसी तरह और भी ऊंचे स्थान पर ले जाएगी, जिस तरह सन इकहत्तर के युद्ध के बाद इंदिरा गांधी को खासी लोकप्रियता मिली थी। इंदिरा, दुर्गा का अवतार मानी गई थीं। मोदी का फ़ैसलाकुन अंदाज़ जनता को पसंद आएगा, यह तय मानिए। मैंने पहले कहा था, उरी के हमले के बाद भी मोदी ने गरीबी के खिलाफ युद्ध का आह्वान किया था और ऐसा करके मोदी ने भगवा ब्रिगेड के कट्टरपंथियों की बनिस्बत अपनी राजनीतिक संजीदगी साबित की। पाकिस्तान के साथ अगली झड़पें मोदी के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद साबित होंगी और मोदी लार्ज-दैन-लाइफ किरदार में उभर सकते हैं।

अगर पाकिस्तान के साथ लड़ाई हुई तो बिखरा हुआ पाकिस्तान पहले से अधिक बिखर जाएगा, और जैसी कि इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भविष्यवाणी की है, बीजेपी का राजनैतिक वर्चस्व अगले 15-20 बरस तक के लिए कायम हो जाएगा।

पाकिस्तानी चालबाज़ियों के खिलाफ इस सर्जिकल स्ट्राइक ने यह भी तय किया है कि चीन को भी एक चेतावनी मिले, जो अमूमन भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ कर लेता है। अब यह बात सवालों के घेरे में है कि हम चीन के मुकाबले सैन्य शक्ति में कहां ठहरते हैं भला? लेकिन वह सवाल बाद का है, धौंसपट्टी नहीं सही जाएगी, यह आज की कूटनीति है।

जहां तक मोदी का प्रश्न है, उनकी उंगलियों की इस हल्की जुंबिश से यूपी और उत्तराखंड चुनाव पर असर पड़ेगा यह तो तय है ही, बात-बात पर अपनी एटमी शक्ति की शेखी बघारने वाले पाकिस्तान को भी विश्व भर में नीचा देखना पड़ रहा है।

(यह लेख, लेखक के ब्लॉग गुस्ताख से लिया गया है।)

   

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